अगर आप ख़ुद को ज़्यादा तकलीफ़ में महसूस करते हो तो, वक़्त से मौत नहीं दर्द माँगो, क्यूँकि जो दर्द से लड़ना सीख गया, वो ज़िंदगी में कभी कोई जंग नहीं हार सकता।
क़िस्मत से मिली जीत से ख़ुशी मिलती है, और मेहनत से मिली जीत से सुकून, पर असली मज़ा तो हारने में है, क्यूँकि हारने से सीख मिलती है। जीत तो हमारी तब होती है, जब हम अपनी जीत को हारकर जीना सीख जाते हैं। क्यूँकि ख़ुशी और सुकून के बिना अगर कोई जी रहा है तो वह ख़ुद के लिए नहीं जी रहा, ये सिर्फ़ वही जानता है की वो क्यूँ जी रहा, और ऐसी ज़िंदगी उसे किसी बड़ी जीत की तरफ़ ले जाती है, जिसका पता ना ख़ुद उसे होती है और ना उसके आस-पास के लोगों को। क्यूँकि जहाँ दिल पत्थर होने लगता है वहाँ दिमाग़ ही दिल बन जाता है और दिल, दिमाग़ बन जाता है। अर्थात्, उसके अंदर की पंचतत्व कि शक्तियाँ अपना आकार लेना प्रारम्भ कर देती है और वह धीरे धीरे सूर्य की तेज़ की भाँति उभरता है, जैसा काली अंधेरी रात के बाद सुबह का आना तय होता है। इसलिए मेरे दोस्तों, हार से घबराए नहीं, क्यूँकि हारना की जीत की पहली सीढ़ी है, यही तो आरम्भ है....