आज तनहाइयों के दौर में, मैं लिख रहा तन्हाई,
बैठा हूँ, सोचता हूँ, यहाँ कोई आवाज ना कोई शहनाई,
जिस दौर से मैं गुजरा, वहाँ ना कुआँ था ना खायी,
चिखेंगी कविता बनकर, मेरे आंसुओं की तिस्निगायी,
पर एक दिन बताऊंगा तुझे, तेरी ही सच्चाई,
जब दहसत भी चीख उठेगी, देख तेरी बेपरवाही,
रूह हो गया मैं तो कब का, जब तूने कर दी रुसवाई,
अब तो जीता हूँ, इस जिस्म में बनके अदागायी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
इस भीड़ में तू खो जाएगी, अश्रु मेरी तुझे ढूंढ लाएगी,
जब हर तर्पण, तुझसे उसका हिसाब मांगने आएगी,
भिखारन कही उस माँ को, जो थी तुझे अपनाई,
शब्द मेरे चीखेंगे, और चिन्खेगी इनकी गहरायी,
ना नाम रहेगा मेरा, ना रहेगी वजूद की जुदाई,
ना नाम रहेगा मेरा, ना रहेगी वजूद की जुदाई,
मैं त्रस्त हो चूका हूँ, तू और कुछ ना कर पायेगी,
मेरे सामने तू खुद की, सच्चाई कैसे छुपायेगी,
अरे ये नासमझों की अदालत, क्या फैसला सुनाएगी,
सोच उस अदालत में, तू मुझसे नजरें कैसे मिलायेगी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
याद कर वो दिन जब थी कसम क्या तूने खिलवाई,
उसी की कसम के बदौलत, तेरे अपने हैं सभी वहाँ,
वरना, दूर सन्नाटे में कही चींखती उनकी वादा-खिलाफाई,
आज मेरे अपने सभी साथ छोड़ दिए तो क्या,
मैं खुद से करूँगा, खुद को मेरे अन्दर जीने की लड़ाई,
मेरा जो ध्येय है, उसे पूरा मैं हर संभव करूँगा,
अगर मैं मर भी गया तो भी,शब्दों में जिन्दा मैं रहूँगा,
तेरी नाकामयाब मोहब्बत की दास्तां ज़माने से कहूँगा,
पर तू अभी डर मत, अभी जिन्दा मैं रहूँगा,
अपनी कुछ जिम्मेदारियों को पूरा भी करूँगा,
बहन की शहनाई और भाई को है राह दिलाऊंगा,
हो सकता है, तब तक मैं कही रेत में खो जाऊंगा,
तर्पण का अर्थ बनकर दरिया को सोख जाऊंगा,
अब मैं ना रो पाउँगा, ना तू मुझे रुला पायेगी,
अश्रु को शब्दों में पिरोंऊंगा, कविता कहलाएगी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
तुझसे अब मोहब्बत ना करूँगा, ना नफरत करूँगा,
शब्दों का संसार बसा के, मैं बस लिखता रहूँगा,
तेरा ना जिक्र होगा, ना कोई तेरा कोई नाम होगा,
बेवफा तू कहलाएगी, मोहब्बत मेरा नाम होगा,
तेरा पता लिखने की जरुरत नहीं, अब क्या कहूँ,
तू सर-ए-बज्म में, खुद ही नीलाम होगा,
कल को तो ये मैं, लिबास छोड़ जाऊंगा,
फिर कहीं, और कभी एक दूसरे लिबास में,
तुम भी आ जाओगी, और मैं भी आ जाऊंगा,
पर इस बार सभी यादो को, सहेज मैं लाऊंगा,
जो किया तूने मेरे साथ, उसे फिर से मैं दोहराऊंगा,
फिर मैं तुझे तड़पता उस लिबास में छोड़ जाऊंगा,
जहाँ तुझे पता चले उस एहसास में छोड़ जाऊंगा,
पर शायद तू जानती है, मैं ऐसा ना कर पाउँगा,
तेरे आसुओं को रोकने मैं फिर लौट आऊंगा,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,