वो कहती है - आतिफ़

वो कहती है सुनो जाना, मोहब्बत मोम का घर है,
तपिश ये बदगुमानी की, कहीं पिघला ना दे मुझको।
मैं कहता हूँ, जिस दिल में जरा भी बदगुमानी हो,
वहां कुछ और हो तो हो, मोहब्बत हो नहीं सकती।

वो कहती है सदा ऐसे ही, क्या तुम मुझको चाहोगे,
की मैं इसमें कमी, बिल्कुल गवांरा कर नहीं सकती।
मैं कहता हूँ, मोहब्बत क्या है, ये तुमने सिखाया है,
मुझे तुमसे मोहब्बत के सिवा, कुछ भी नहीं आता।

वो कहती है जुदाई से, बहूत डरता है मेरा दिल,
की खुद को तुमसे हटकर देखना, मुमकिन नहीं है अब।
मैं कहता हूँ, यही खच्छे, बहूत मुझको सताते है,
मगर सच है मोहब्बत में, जुदाई साथ चलती है।

वो कहती है बताओ क्या, मेरे बिन जि सकोगे तुम,
मेरी बातें, मेरी यादें, मेरी आँखें, भुला दोगे।
मैं कहता हूँ, कभी इस बात पे सोचा नहीं मैंने,
अगर इक पल के लिए भी सोचूं, तो सांसें रुकने लगती है।

वो कहती है तुम्हे मुझसे, मोहब्बत इस कदर क्यूँ है,
की मैं इक आम सी लड़की, तुम्हें क्यूँ खास लगती हूँ।
मैं कहता हूँ कभी खुद को, मेरी आँखों से तुम देखो,
मेरी दीवानगी क्यूँ है, ये खुद ही जान जाओगी।

वो कहती है मुझे वारिफ्त्गी से, देखते क्यूँ हो,
की मैं खुद को बहूत ही कीमती, महसूस करती हूँ।
मैं कहता हूँ मता-ए-जां, बहूत अनमोल होती है,
तुम्हे जब देखता हूँ, जिन्दगी महसूस करता हूँ।

वो कहती है, मुझे अल्फाज के जुगनू नहीं मिलते,
तुम्हे बतला सकूँ दिल में, मेरी कितनी मोहब्बत है।
मैं कहता हूँ मोहब्बत तो, निगाहों से छलकती है,
तुम्हारी खामोशी मुझसे, तुम्हारी बात करती है।

वो कहती है बताओ ना, किसे खोने से डरते हो,
बताओ कौन है वो, जिसको ये मौसम बुलाते हैं।
मैं कहता हूँ ये मेरी शायरी है, आयना दिल का,
जरा देखो बताओ क्या तुम्हे, इसमें नज़र आया।

वो कहती है आतिफ जी, बहूत बातें बनाते हो,
मगर सच है की बातें बहूत ही, साद रखतीं हैं।
मैं कहता हूँ ये सब बातें, फ़साने, इक बहाना है,
की पल कुछ जिंदगानी के, तुम्हारे साथ कट जाए।

फिर उसके बाद ख़ामोशी का, दिलकश रक्स होता है,
निगाहें बोलती है और ये लब, खामोश रहते हैं।