% आनंद का मार्ग

ज्यादातर लोगों के लिए, भावनाएं सबसे प्रधान होती हैं। वे जीवन के किसी और पहलू के बजाय भावनाओं के जरिये ज्यादा आसानी से तीव्रता के चरम पर पहुंच सकते हैं। भावना या जोश के मार्ग के लिए एक तरह की बेफिक्री या उन्मुक्तता की जरूरत होती है। जैसा कि फ्रांसिस बेकन ने कहा था, ‘प्रेम करना और बुद्धिमान होना, एक साथ असंभव है।’ अगर आप स्मार्ट और सही होना चाहते हैं, तो प्रेम कभी नहीं होगा। जो लोग प्रेम में पड़ना चाहते हैं, उन्हें बेवकूफ समझे जाने के लिए, आघात सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। यही वो चीज है जो लोगों को डराती है, लोगों को दूर भगाती है। ऐसा नहीं है कि इसके बिना आप कमजोर नहीं हैं या आपको चोट नहीं पहुंच सकता। फर्क सिर्फ इतना है कि जब आप प्रेम में पड़ते हैं, तो आप स्वेच्छा से कमजोर होना चाहते हैं। बाकि आप चाहे कितने भी सुरक्षित क्यों न हों, जीवन की घटनाएं आपको वैसे भी अघात पहुँचा सकती हैं। प्रेम में आप अपनी इच्छा से ऐसी स्थिति में जाते हैं।
इसका फायदा यह है कि जोश या जुनून के रास्ते पर चलने के लिए बहुत ज्यादा विद्वता, समझ या साधना की जरूरत नहीं है। इसके लिए बस एक सूत्री प्रेम संबंध की जरूरत होती है, जो किसी भी वजह से न बदले। अब आपको इस तरह के प्रेम संबंधों की आदत हो चुकी है, जहां अगर आपको बदले में कुछ मिलता है, तो आपका प्रेम संबंध चलता है। जैसे ही आपको लगता है कि आपको कुछ नहीं मिल रहा, प्रेम संबंध समाप्त हो जाता है। यह प्रेम संबंध नहीं, लेन-देन है, व्यापार है। अगर आप दलाल स्ट्रीट में कारोबार कर रहे हैं, तब तो फिर ठीक है। लेकिन अगर आप अपने भीतर ही व्यापार कर रहे हैं, तो यह विनाशकारी है। यह जीवन को नष्ट कर देता है। आम तौर पर, खुद को आध्यात्मिक कहने वाले लोग कहते हैं कि पैसे से जीवन नष्ट हो जाता है, मगर ऐसा नहीं है। जब आपके जीवन में कोई जोश नहीं होता और आपकी भावनाओं में कोई उत्साह नहीं रह जाता, तब आपका जीवन नष्ट हो जाता है। यह उसे सुरक्षित करता है, मगर आप अपने जीवन को जितना अधिक सुरक्षित करने की कोशिश करते हैं, आप मौत की ओर उतने ही उन्मुख हो जाते हैं क्योंकि दुनिया में सबसे सुरक्षित चीज मौत है। अगर आप जीवित हैं, तो आपके साथ कुछ भी हो सकता है।
जो व्यक्ति किसी चीज को अच्छा या बुरा नहीं मानता, जिसके लिए, चाहे कुछ भी हो जाए, सब ठीक होता है, वह एक सच्चा भक्त होता है। वह एक सच्चा प्रेमी होता है। चाहे जो कुछ भी हो जाए, उसका एक ही लक्ष्य होता है। यह हिसाब-किताब करने वाले लोगों को मूर्खतापूर्ण लग सकता है। जो लोग हिसाब-किताब करते हैं, वे आरामदेह जीवन जी सकते हैं मगर वे अस्तित्व का आनंद कभी नहीं जान पाएंगे। जो लोग हिसाब-किताब नहीं करते, जो जोश के साथ जीवन जीते हैं, वे अस्तित्व के आनंद को जानते हैं। अगर आप हमेशा इस हिसाब-किताब में उलझे रहते हैं कि आप कितना लगाते हैं और आपको कितना वापस मिलता है, तो आपको सिर्फ सुख-सुविधाएं ही मिल पाएंगी, जीवन का आनंद नहीं।

% आरम्भ - रौशन केशरी

अगर आप ख़ुद को ज़्यादा तकलीफ़ में महसूस करते हो तो, वक़्त से मौत नहीं दर्द माँगो, क्यूँकि जो दर्द से लड़ना सीख गया, वो ज़िंदगी में कभी कोई जंग नहीं हार सकता।

क़िस्मत से मिली जीत से ख़ुशी मिलती है, और मेहनत से मिली जीत से सुकून, पर असली मज़ा तो हारने में है, क्यूँकि हारने से सीख मिलती है। जीत तो हमारी तब होती है, जब हम अपनी जीत को हारकर जीना सीख जाते हैं। क्यूँकि ख़ुशी और सुकून के बिना अगर कोई जी रहा है तो वह ख़ुद के लिए नहीं जी रहा, ये सिर्फ़ वही जानता है की वो क्यूँ जी रहा, और ऐसी ज़िंदगी उसे किसी बड़ी जीत की तरफ़ ले जाती है, जिसका पता ना ख़ुद उसे होती है और ना उसके आस-पास के लोगों को। क्यूँकि जहाँ दिल पत्थर होने लगता है वहाँ दिमाग़ ही दिल बन जाता है और दिल, दिमाग़ बन जाता है। अर्थात्, उसके अंदर की पंचतत्व कि शक्तियाँ अपना आकार लेना प्रारम्भ कर देती है और वह धीरे धीरे सूर्य की तेज़ की भाँति उभरता है, जैसा काली अंधेरी रात के बाद सुबह का आना तय होता है। इसलिए मेरे दोस्तों, हार से घबराए नहीं, क्यूँकि हारना की जीत की पहली सीढ़ी है, यही तो आरम्भ है....

॥ शिव प्रार्थना ॥

विश्वेश्वरायः महादेवायः त्रयम्बकायः शिवः शिवः॥
त्रिपुरान्तकायः त्रिकाग्निकालायः कलादिरुद्रायः शिवः शिवः॥
नीलकण्ठायः मृत्युंजायः सर्वेश्वरायः शिवः शिवः॥
वरदंवन्देः सदाशिवायः भक्तप्रियायः शिवः शिवः॥

॥ आरती हनुमान जी की ॥

आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्टदलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपै, रंग दोष निकट न झांके ।।
अंजनी पुत्र महाबल दाई, संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिय सुधि लाये ।।
 लंका सो कोटि समुद्र सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर संहारे, सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्षमण मूर्छित पड़े सकारे, लाये सजीवन प्राण उबारे ।।
पैठी पाताल तोरी जम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बायै भुजा असुर दल मारे, दाहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि जन आरती उतारे, जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थाल कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान की आरती गावै, बसि बैकुंठ परम पद पावै ।।

॥ श्री बजरंग बाण का पाठ ॥

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥ 

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

II संकट मोचन हनुमान अष्टक II

बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों I 
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात  न टारो I 
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो I 
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो I को – १

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो I 
चौंकि महामुनि साप दियो तब , चाहिए कौन बिचार बिचारो I 
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो I  को – २

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो I 
जीवत ना बचिहौ हम सो  जु , बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो I 
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब , लाए सिया-सुधि प्राण उबारो I  को – ३

रावण त्रास दई सिय को सब , राक्षसी सों कही सोक निवारो I 
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाए महा रजनीचर मरो I 
चाहत सीय असोक सों आगि सु , दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो I  को - ४ 

बान लाग्यो उर लछिमन के तब , प्राण तजे सूत रावन मारो I 
लै गृह बैद्य सुषेन समेत , तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो I 
आनि सजीवन हाथ  दिए तब , लछिमन के तुम प्रान उबारो I को - ५ 

रावन जुध अजान कियो तब , नाग कि फाँस सबै सिर डारो I 
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल , मोह भयो यह संकट भारो I 
आनि खगेस तबै हनुमान जु , बंधन काटि सुत्रास निवारो I  को – ६

बंधू समेत जबै अहिरावन,  लै रघुनाथ पताल सिधारो I 
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि , देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो I 
जाये सहाए भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत संहारो I को - ७ 

काज किये बड़ देवन के तुम , बीर महाप्रभु देखि बिचारो I 
कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसे नहिं जात है टारो I 
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कछु संकट होए हमारो I  को - ८ 

लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर I 
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर II

॥ श्री हनुमान चालीसा ॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना । लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ 

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

॥ माँ शारदा की स्तुति ॥

माँ शारदे! कहाँ तू वीणा बजा रही है।
किस मंजु ज्ञान से तू जग को लुभा रही है॥
किस भाव में भवानी तू मग्न हो रही है।
विनती नहीं हमारी तू क्यों माँ सुन रही है॥
हम दीन बाल कब से विनती सुना रहें हैं।
चरणों में तेरे माता हम सिर झुका रहे हैं॥
अज्ञान तुम हमारा माँ शीघ्र दूर कर दो।
द्रुत ज्ञान शुभ्र हममें ओ वीणा पाणिभर दो॥
बालक सभी जगत के सूत मातु हैं तुम्हारे।
प्राणों से प्रिय तुम्हें हम पुत्र सब दुलारे॥
हमको दयामयी ले निज गोद में पढाओ।
अमृत जगत का हमको माँ शारदा पिलाओ॥
मातेश्वरी ! सुनो अब सुंदर विनय हमारी।
कर दया दृष्टी हर लो , बाधा जगत की सारी॥

॥ आरती माँ सरस्वती जी की ॥

ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्‍गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय.....
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥ जय.....
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला ॥ जय.....
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥ जय.....
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो ॥ जय.....
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥ जय.....
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें ॥ जय.....

॥ आरती दुर्गा माताजी की ॥

अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पडी है भारी माँ।
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी।
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, है अष्ट भुजाओ वाली, दुष्टो को पलमे संहारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

माँ बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता।
पूत - कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता ॥
सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियो के दुखडे निवारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ।
हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना ॥
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियो के सत को सवांरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली।
मॉ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वाली, भक्तो के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥

॥ आरती श्री अम्बे जी की ॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी। सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों। बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे॥

॥ शिव रुद्राष्टकम् ॥

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥२॥

तुषाराद्रि सङ्काश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये, ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

॥ शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् ॥

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय ॥ १॥

मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ‘म’ काराय नम: शिवाय ॥ २॥

शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द, सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै ‘शि’ काराय नम: शिवाय ॥ ३॥

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य, मुनीन्द्रदे वार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय, तस्मै ‘व’ काराय नम: शिवाय ॥ ४॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै ‘य’ काराय नम: शिवाय ॥ ५॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं, य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकम अवाप्नोति, शिवेन सह मोदते ॥ ६॥

इति शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रं सम्पूर्णम्

बाँसुरी चली आओ - डॉ कुमार विश्वास

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा।
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा।
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है।
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है।
रात की उदासी को याद संग खेला है ।
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है।
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से,
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से,
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है।
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है।
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

॥ शिव - ताण्डव- स्तोत्रम् ॥

जटाट-वी-गलज्जल-प्रवाह-पावि-तस्थले, गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् ।
डमड्डमड्डम-ड्डम-न्निनाद-वड्ड-मर्वयं, चकार-चण्ड-ताण्डवं-तनोतु-नः-शिवः-शिवम् ॥॥

जटा-कटा-हसं-भ्रम-भ्रम-न्निलिम्प-निर्झरी, विलोल-वीचि-वल्लरी विराज-मान-मूर्धनि ।
धगद्-धगद्-धग-ज्ज्वलल्-ललाट-पट्ट-पावके, किशोर-चन्द्र-शेखरे-रतिः-प्रतिक्षणं-मम ॥२॥

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी-विलास-बन्धु-बन्धुर, स्फुर-द्दि-गन्त-सन्तति-प्रमोद-मान-मानसे ।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरा-पदि, क्वचिद्-दिगम्बरे-मनो-विनोद-मेतु-वस्तुनि ॥३॥

लता-भुजङ्ग-पिङ्ग-लस्फुरत्-फणा-मणि-प्रभा, कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्-वधू-मुखे ।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे, मनो-विनोद-मद्भुतं-बिभर्तु-भूत-भर्तरि ॥४॥

सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर, प्रसून-धूलि-धोरणी-विधूस-राङ्घ्रि-पीठभूः ।
भुजङ्ग-राज-मालया-निबद्ध-जाट-जूटक, श्रियै-चिराय-जायतां-चकोर-बन्धु-शेखरः ॥५॥

ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनञ्जय-स्फु-लिङ्गभा, निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम् ।
सुधा-मयू-खले-खया-विराज-मान-शेखरं, महा-कपालि-सम्पदे-शिरोज-टाल-मस्तुनः ॥६॥

कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धग-ज्ज्वल, द्धनञ्ज-याहुती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके ।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक, प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि-त्रिलोचने-रति-र्मम ॥।७॥

नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्-धदुर्धर-स्फुरत्, कुहू-निशीथि-नीतमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः ।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु-कृत्ति-सिन्धुरः, कला-निधान-बन्धुरः-श्रियं-जगद्-धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालि-म-प्रभा, वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं-भवच्छिदं-मखच्छिदं, गजच्छि-दांध-कच्छिदं-तमं-तक-च्छिदं-भजे ॥९॥

अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदंब-मञ्जरी, रस-प्रवाह-माधुरी-विजृं-भणा-मधु-व्रतम् ।
स्मरान्तकं-पुरान्तकं-भवान्तकं-मखान्तकं, गजान्त-कान्ध-कान्तकं-तमन्त-कान्तकं-भजे ॥१०॥

जयत्व-दभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्ग-मश्वस, द्वि-निर्ग-मत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट् ।
धिमि-द्धिमि-द्धिमि-ध्वन-न्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल, ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः-शिवः ॥११॥

स्पृष-द्वि-चित्र-तल्पयो-र्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्र-जोर्, गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः-सुहृ-द्वि-पक्ष-पक्षयोः ।
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः-प्रजा-मही-महेन्द्रयोः, सम-प्रवृत्तिकः-कदा-सदा-शिवं-भजे ॥१२॥

कदा-निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे-वसन्, विमुक्त-दुर्मतिः-सदा-शिरः-स्थ-मञ्जलिं-वहन् ।
विमुक्त-लोल-लोचनो-ललाम-भाल-लग्नकः, शिवेति-मंत्र-मुच्चरन्-कदा-सुखी-भवा-म्यहम् ॥१३॥

इदम्-हि-नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमं, स्तवं-पठ-न्स्मर-न्ब्रु-वन्नरो-विशुद्धि-मेति-संततम् ।
हरे-गुरौ-सुभक्ति-माशु-याति-नान्यथा, गतिं-विमोह-नंहि-देहिनां-सुशङ्क-रस्य-चिंतनम् ॥१४॥

पूजा-वसान-समये-दशवक्त्र-गीतं, यः शंभु-पूजन-परं-पठति-प्रदोषे ।
तस्य-स्थिरां-रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां, लक्ष्मीं-सदैव-सुमुखिं-प्र-ददाति-शंभुः ॥१५॥

इति श्रीरावण-कृतम् शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

प्रतिदिन पूजन मंत्र

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ॐ गजानन भूत गणधिसेवितम , कपित्थ जम्बूफल चारू भक्षणं !
उमा सुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम !!
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मंगलम भगवान विष्णु मंगलम गरुणध्वज:।
मंगलम पुण्डरीकाक्षाय मंगलाय तन्नोहरी ।।
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वक्र तुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ:!
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा!!
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कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानी सहितं नमामि॥

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ॐ भू: भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्॥
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या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ॥2॥
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ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
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या देवी सर्वभुतेषु शर्क्ति-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु पितृ-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु बिद्धा-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
या देवी सर्वभुतेषु शान्ति-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
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गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
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त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव !
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव , त्वमेव सर्व मम देव देव !!
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मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरे:।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।।
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॥ आरती श्री गणेश जी की ॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
जय गणेश... 
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
जय गणेश... 
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश... 
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
जय गणेश... 
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश...
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
जय गणेश...

॥ श्री गणेश स्तुति ॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरै।
तीन लोक तैंतीस देवता, द्वार खड़े सब अर्ज करैं ॥
गणपति की सेवा...
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजैं, आन-वान सों चवर करैं।
धूप दीप और लिए आरती, भक्त खड़े जयकार करैं ॥
गणपति की सेवा...
गुड़ के मोदक भोग लगत हैं, मूषक वाहन चढ़ा करै।
सौम्यरूप सेवा गणपति की, विघ्न भाग जा दूर परैं ॥
गणपति की सेवा...
भादों मास और शुक्ल-चतुर्थी दिन दोपारा भरपूर करे।
लियो जन्म गणपति प्रभुजी सुन, दुर्गा मन आनन्द भरैं ॥
गणपति की सेवा...
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुन्या सब विघ्न टरैं।
देखि वेद ब्रह्माजी जाको, विघ्न विनाशक नाम धरैं ॥
गणपति की सेवा...
एक दन्त गजवदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरैं।
पग थंभा सा उदर पुष्ट है, देख चन्द्रमा हास्य करै ॥
गणपति की सेवा...
दै शराप श्रीचन्द्र देव को, कला हीन तात्काल करैं।
चौदह लोक में फिरैं गणपति, तीन भुवन में राज करैं ॥
गणपति की सेवा...
गणपति की पूजा पहले करनी, काम सभी निर्विघ्न सरैं।
पूजा काल आरती गावै, ताके सिर यश छत्र फिरैं ॥
गणपति की सेवा...

॥ आरती श्री जगदीश जी की ॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । स्वामी।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ ॐ जय॥

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का । स्वामी।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥ ॐ जय॥

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी । स्वामी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥ ॐ जय॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी । स्वामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥ ॐ जय॥

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता । स्वामी।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ जय॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति । स्वामी।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ ॐ जय॥

दीनबंधु दुखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे । स्वामी।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ जय॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा । स्वामी।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ॥ ॐ जय॥

श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई जन गावे । स्वामी।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावे ॥ ॐ जय॥

॥ आरती श्री शिव जी की ॥

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा। स्वामी।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे। स्वामी।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। स्वामी।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। स्वामी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। स्वामी।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। स्वामी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। स्वामी।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

त्रिगुणात्मक शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। स्वामी।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

झांसे की रानी

झांसे की रानी… जी हाँ, सही पढ़ा आपने, झाँसी नहीं बल्कि झांसे की रानी। ये रानी और कोई नहीं बल्कि आज कल की औरतें या लडकियाँ हैं।

आज कल रोज कहीं न कहीं ये खबर सुनने को या पढ़ने को मिलती है की, दो साल तक लड़के ने शादी का झांसा देकर लड़की का रेप किया। कितना हास्यप्रद है ये। और उस से भी बड़ी बात ये की मीडिया इस तरह की खबर दिखाकर अपनी मूर्खता का जबरदस्त प्रदर्शन करता है। सवाल ये है क्या उस पुरुष ने उस महिला को 2 साल तक बिस्तर से बाँध कर रखा था ? अगर महिला 2 साल तक अपनी मर्ज़ी से सम्बन्ध बना रही थी फिर वो रेप कैसे हो सकता है ?

क्या भारत के स्वघोषित विद्वान मीडिया में इतना दिमाग नहीं है ? आज यही समाज का कड़वा सच है। पहले लडकियाँ रिलेशन में रहती है, फिर कोईं अनबन हो जाने पर रेप केस ठोंक देती है, और कहती है की, शादी का झांसा देकर रेप किया। क्या इन पढ़ी-लिखी लड़कियों में बुद्धि नहीं होती कि ये झांसे में आ जाती हैं ?

चाणक्य कहते है की – मुर्ख पुरुष ही स्त्री पर विश्वास करते हैं। आज कल अदालतों में इस तरह के मामलों की भरमार है। लगभग 80% मामले इसी तरह के होते है। और इनका परिणाम ये होता है की, जो 20% मामले सच्चे होते है, उनमें पीड़ित लड़कियों को इंसाफ नहीं मिलता। झूठे रेप केस के कारण, सच्चे रेप केस में भी इन्साफ करना मुश्किल होता जा रहा है।

और अगर कोई लड़का किसी लड़की से विवाह का वादा करे, तब क्या वो लड़की उस लड़के के बिस्तर में लेट जाएगी ? क्या वो लड़की गँवार है या उस लड़की में इतने संस्कार नहीं है की, विवाह पूर्व इस तरह के कार्य पाप माने जाते है। ऐसे बहुत से कारण होते है जब लड़का उस लड़की से विवाह नहीं कर पाता, फिर जब 2 साल से सब कुछ लड़की की इच्छा से हो रहा था तो, फिर ये बलात्कार कैसे हो गया ? और दो साल तक लड़की बेहोश थी क्या ? बिलकुल नहीं… तब लड़की बेहोश नहीं थी, बल्कि लड़के के पैसे और लड़के के साथ सेक्स, इन दोनों का ही आनंद ले रही थी। यही सच है। इस तरह की “झांसे की रानियों” से सभी पुरुष मित्र सावधान रहें।

भारतीय कानून चरित्रहीन औरतों का संरक्षक है। ये भारत की अधिकतर औरतों का गन्दा सच है, जिसको अक्सर ढंकने की कोशिश की जाती है। कुछ दिनों पहले एक अभिनेत्री ने एक एक अत्यंत धनी व्यक्ति पर छेड़छाड़ का केस लगाया था। सभी जानते हैं कि, मॅाडल और अभिनेत्री बनने के रास्ते में कदम-कदम पर अनगिनत बेडरूमों से होकर गुजरना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में पहले ये औरते अमीर लोगों के साथ पैसे के लालच में बिना शादी के दिन गुजारती हैं, फिर जब जी भर जाता है तो छेड़छाड़ का झूठा केस लगा देती है।

पिछले कुछ सालों में हमने कई नेताओं एवं उच्च पदों पर बैठे हुए कई महत्वपूर्ण पदाधिकारियों का सम्मान और कैरियर तबाह होते देखा। जो इसी तरह के रेप के आरोपों का शिकार हो गये। महिलाओं के द्वारा की जा रही इस ज्यादती का विरोध करने का साहस ना तो मीडिया में है, और ना ही किसी राजनीतिक दल में। केवल एक दल शिवसेना ने वो दम दिखाया था, जब वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुनील पारसकर को एक मॅाडल ने रेप के आरोप में बुरी तरह फँसाया। जिससे पुलिस बल में सालों तक अपनी सेवाएं देने वाले पारसकर रातों-रात खलनायक बन गये। तब शिवेसना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में डीआईजी का बचाव करते हुए कहा गया था कि पुरुषों पर रेप का आरोप लगाना आजकल फैशन बन गया है। पार्टी ने कहा था की रसूखदार समाज में प्रचार के लिए पुरुषों पर छेड़छाड़ और बलात्कार के आरोप बढ़ रहे हैं। यह लगभग फैशन बन गया है। निजी दुश्मनी भुनाने के लिए ऐसे आरोप आजकल हथियार बन गए हैं।

पुरूषों पर अत्याचार करने एवं ब्लैकमेंलिंग का महिलाओं के पास दूसरा सबसे बड़ा हथियार है धारा 498-ए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार इस बात पर चिन्ता प्रकट की जा चुकी है कि, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि इस धारा के तहत तर्ज किये जाने वाले मुकदमों में सजा पाने वालों की संख्या मात्र 2% है। यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता करने का भी कोई प्रावधान नहीं है।

ऐसे में मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत एक बार मुकदमा अर्थात् एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता है। जिसकी शुरुआत होती है, वर पक्ष के लोगों के पुलिस के हत्थे चढने से और वरपक्ष के जिस किसी सदस्य का भी, वधू पक्ष की ओर से धारा 498-ए के तहत एफआईआर में नाम लिखवा दिया जाता है, उन सबको बिना ये देखे कि उन्होंने कोई अपराध किया भी है या नहीं उनकी गिरफ्तारी करना पुलिस अपना परम कर्त्तव्य समझती है, और पूरी मुस्तैदी दिखाती है।

वैसे आजकल की कुछ लड़कियों को पता होता है की सभी कानून अपने पक्ष में है। इसीलिए ये लडकियाँ और इनका परिवार पहले से ही तैयारी करते हैं किसी मुर्गे को फंसाने की। जैसे ही कोई लड़का शादी करता है, वैसे ही, वो पूरी तरह से दलदल में फंस जाता है। उसे पति पर सास-ससुर पर, देवर पर, देवरानी पर, जेठानी पर, ननद पर, यहाँ तक की पडोसी पर भी, दहेज़ का केस करने का कानून में अधिकार है। और वो झूठा सच्चा जैसा भी केस कर सकती है।

महिला कानूनों को कमाई का धंधा बना लिया गया है। कल की फ़िक्र अब ज्यादातर शातिर महिलाओं को नहीं रही। इंजीनियर बनना है तो स्वयं मेहनत करने की क्या जरूरत ? किसी इंजीनियर को फंसा लो। डॅाक्टर बनने के लिए स्वयं मेहनत करने की क्या जरूरत ? किसी डॅाक्टर को फंसा लो। सैलरी तो अपने हाथ ही आएगी। फिर बाद में छोड़ने का मन करे तो दहेज प्रताड़ना के आरोप में फंसा दो या फिर मुकदमें का डर दिखाकर पैसे ऐंठो।

आज शहरों के लगभग हर आधुनिक कालोनियों में ऐसे केस देखने को मिल जाएँगे। परिवार टूट रहे है, हर दूसरा घर बर्बाद हो रहा है, तलाक़ दर 22% हो गई है। वो दिन दूर नहीं जब भारत अमेरिका के 40% तलाक़ दर को पार कर जायेगा।

क्या आपको पता है कि -
1) अगर दो नाबालिक लड़के-लडकियाँ सहमति से सेक्स करते है, और अगर वो पकड़े जाते हैं, तो लड़के पर रेप करने का मामला दर्ज होता है, लड़के की ज़िन्दगी बर्बाद हो जाती है। एक बात समझ नहीं आई की, लड़की के ऊपर लड़के का रेप करने का मामला दर्ज क्यों नहीं होता ?
2) अगर आप विवाहित पुरुष है, और अगर आपकी पत्नी आपसे चोरी चुपके किसी की रखैल बनकर रहती है, और किसी और के बच्चे की माँ बन जाती है, तो भारतीय कानून के अनुसार वो बच्चा डीएनए टेस्ट होने तक, यानी सालों तक आपका ही माना जाएगा और उस बच्चे का भरण पोषण आपको ही करना पड़ेगा। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको जेल में ठूँस दिया जाएगा। लेकिन कुल मिलाकर आपकी बदचलन पत्नी को कोई सजा नहीं होगी।
3) अगर आपकी पत्नी चरित्रहीन है तो, आप उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकते। सिर्फ तलाक ले सकते है। भारतीय कानून के अनुसार सिर्फ चरित्रहीन पुरुष को ही सजा दी जा सकती है, चरित्रहीन औरत को नहीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आफताब आलम ने इस कानून की भर्त्सना करते हुए इसे पुरुष विरोधी बताया था।
4) अगर कोई महिला आपका यौन शोषण करे तो आपको कोई न्याय नहीं मिलेगा। क्योंकि भारतीय कानून में ऐसी औरतों के लिए कोई प्रावधान ही नहीं है।
5) हमारे देश में हर साल कई महिलाएं नाबालिग लड़कों के साथ सेक्स करती हैं, लेकिन उन महिलाओं पर कोई रेप केस दर्ज नहीं होता, क्योंकि भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार महिला रेप कर ही नहीं सकती। जबकि इंग्लैंड में 64000 ऐसी महिलाओं को नाबालिक लड़कों का रेप करने के आरोप में जेल में डाला जा चुका है।
6) अगर आपकी पत्नी आप को मानसिक त्रास देती है या शारीरिक हमला करती है, तो उसको घरेलू हिंसा का दोषी नहीं माना जाएगा, लेकिन आपको माना जाएगा।
7) अगर शादी के बाद आप अपनी पत्नी से पैसा मांगते है, तो उसको दहेज़ माना जाएगा जबकि अगर वो आपसे पैसा मांगे तो उसको दहेज़ नहीं माना जा सकता।

महिलाओं के ऊपर देश का बिकाऊ मीडिया खूब सर्वे करता है, केंद्र सरकार खूब सर्वे करती है जिसमें महिला अत्याचार इत्यादि का जिक्र रहता है, लेकिन पुरुषों के ऊपर आज तक कोई सर्वे नहीं किया गया। बल्कि प्रत्येक मामले में पुरूषों को ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

कहने को भारत में माँ जगदम्बा की पूजा होती है लेकिन यहाँ देवी जैसी औरतों का अकाल सा दिखाई पड़ता है। सन 2012 में भारत के केवल एक राज्य बंगाल में 19000 से अधिक पुरुषो ने आत्महत्या की। ये पुरुष पत्नी पीड़ित थे। जबकि सिर्फ 5000 महिलाओं ने ही शादी के बाद आत्महत्या की। NCRB-2013 (National Crime Record Beuro) के अनुसार भारत में हर साल 65000 विवाहित पुरुष आत्महत्या करते हैं।

देश में आये दिन पुरुषों के ऊपर रेप के दहेज़ के झूठे आरोप लगते हैं। देश में अभी कुछ दिन पहले जब अश्लीलता का विरोध हुआ तो कई राज्यों के युवाओं ने मीडिया के सामने जमकर एक दूसरे को चुम्बन लिए और एक जगह तो अर्धनग्न होकर SLUT-WALK किया। इस कार्य में लड़कियों ने खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उनका उत्साह देखते ही बनता था। इस तरह देश की कुछ लडकियाँ ये भी साबित कर रही हैं की, वो कितनी बेशर्म भी हो सकती हैं। कुछ दशकों पहले हमारे समाज में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। और ये सब हो रहा है झूठी आजादी के नाम पर।

प्रख्यात लेखक मुंशी प्रेमचंद ने कहा था "जो बलवान होते हैं वो अकड़कर नहीं चलते, क्योकि उन्हें मालूम है कि वो बलवान हैं, अतः वो अपनी मजबूती का दिखावा नहीं करते। ठीक उसी तरह पुरूषों को मालूम है कि वो स्वाधीन है, इसीलिए वो अपनी स्वाधीनता का दिखावा नहीं करते। इसके विपरीत लड़कियों को पता है कि वो आज भी पराधीन है, इसीलिए वो अपनी स्वाधीनता का दिखावा करती हैं। और इसके लिए उन्हें जो पहला रास्ता सूझता है वो है छोटे कपड़े। यदि उन्हें स्वयं को पुरूषों के बराबर ही दिखाना है तो मेहनत करे, पढ़ लिखकर कुछ बने और अपने माता-पिता नाम रौशन करे। और रही बात स्त्री-पुरूष समानता की तो आज भी ये केवल एक फिल्मी संवाद ही माना जाएगा। जिसका वास्तविकता से अधिक लेना-देना नहीं है।

कुछ उदाहरण देखिये -
1) रास्ते में कोई लड़की अगर गाड़ी से गिर जाये तो सबसे पहले लड़के ही उसकी मदद करते है, लेकिन अगर कोई लड़का गिर जाये तो कोई भी लड़की उसकी मदद नहीं करती।
2) लडकियों को लड़के रास्ते में लिफ्ट दे देते हैं मगर लडकियाँ लडको को कभी लिफ्ट नहीं देतीं।
3) पुरुष महिलाओं के हक के लिए हमेशा लड़ाई करते दिखाई देते हैं, लेकिन महिलाओं को पुरुषों के हक के लिए कभी लड़ते नहीं देखा।
4) पति अपनी पत्नी को तलाक के बाद भरण पोषण देता है, क्यों न पत्नी भी दिया करे।

हमारे देश के लोग, अमेरिकी महिलाओं को ज्यादा तेज-तर्रार, खुले विचारों वाली और स्मार्ट समझते है। आधुनिक लड़कियाँ तो मानों उनको आदर्श ही बना लेती हैं। परन्तु आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की हमारी आबादी अमेरिका से लगभग तीन गुना ज्यादा है, लेकिन हमारी तुलना में अमेरिका में तीन गुना ज्यादा बलात्कार होते है। ज़रा सोचिये, क्या कारण है की अमेरिका में भारत के मुकाबले तीन गुना ज्यादा रेप होते है।

डॉ राजीव दीक्षित ने इसका कारण "काम वासना के उत्पादन को बताया था" जो लड़कियाँ सड़कों पर अधनंगी घूम कर आसानी से कर सकतीं हैं। अगर अश्लीलता काम वासना और हवस को जन्म नहीं देती तो प्राचीन काल में, ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग करने के लिए महिलाओं, अप्सराओं को ही क्यों भेजा जाता था ? सिर्फ इसीलिए कि तपस्वी होने के बावजूद, अधनंगी महिला को देखकर उनके भीतर का सोया जानवर जागे।

13 अप्रैल 2015 को जारी दुनिया भर में ऑन लाइन पोर्न सामग्री पर नजर रखने वाली संस्था पोर्न हब के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में सबसे ज्यादा इंटरनेट पॉर्न देखने वालों की संख्या के मामले में, भारतीय चौथे स्थान पर थे। इस आंकड़े में चौकाने वाली बात यह है कि भारत में कुल पोर्न देखने वाले लोगों की संख्या का 25 प्रतिशत महिलाओं का है, जो मोबाईल फोन पर पोर्न देखती हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह आंकड़ा विश्व के औसत आंकड़े से लगभग दो प्रतिशत ज्यादा है। जो कि भारत जैसे देश के संदर्भ में और भी आश्चर्यचकित करने वाला है, जहाँ आमतौर पर यहाँ महिलाओं को ऐसे विषयों के बारे में बात तक करने की सामाजिक मान्यता नहीं है, वहां महिलाओं द्वारा पोर्न सामग्री का इस्तेमाल यह साबित करता है कि, भारत में अनुसूया, सीता और मीरा जैसी संस्कारी एवं संयमी महिलाओं की कल्पना करना मूर्खता से कम नहीं है।

बेटी बचाओ, बेटी बचाओ चिल्लाने वाले जरा बताएं कि, बेटी मार कौन रहा है ? जब बेटी स्वयं महिला की कोख में रहती है तो, बिना उस महिला की रजामंदी और जानकारी के लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या होती कैसे है ? क्या इतने कानूनों के होने पर भी महिला इसका विरोध नहीं कर सकती ? क्या इसके लिए महिलाएं भी जिम्मेदार नहीं ?

अनादि काल से पुरुषों को ये सिखाया गया की नारी का सम्मान करो। स्त्री पर हाथ मत उठाओ। जो स्त्री पर हाथ उठाता है, वो मर्द नहीं होता। वो माँ है, बहन है, बेटी है, इत्यादि… फिर इसी समाज में एक और सोच ने जन्म लिया, वो ये की अगर कोई मर्द, स्त्री के हाथों पिट जाए, तब वो मर्द कहलाने योग्य नहीं। आज के कुंठित नारीवादी समाज की कुछ पुरुष विरोधी मानसिकता है कि, कोई भी स्त्री किसी पुरुष पर झूठा रेप केस नहीं लगाती, कोई भी स्त्री अपने सास ससुर का अपमान नहीं करती, कोई भी स्त्री अपने पति पर झूठे आरोप नहीं लगाती, कोई भी स्त्री घर बर्बाद नहीं करती स्त्री तो माँ होती है, दयालु होती है… आदि-आदि।

चाणक्य ने कहा है की - स्त्री अगर कुटिलता का परिचय दे, आश्चर्य मत कीजिये क्योंकि वो उसका स्वाभाविक गुण है। इस देश में हर साल थोक के भाव झूठे रेप के मामले आते है, और कई नौजवान लड़के तो इन मामलों से बचने के लिए आत्महत्या तक कर लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना की दहेज़ केस की अधिकतर शिकायतें झूठी होती हैं। फिर कैसे मान ले की कोई स्त्री अपना घर बर्बाद नहीं करती ?

स्त्री माँ नहीं होती बल्कि माँ बनती है। स्त्री माँ होती और उसके अन्दर इतनी ही ममता होती तो सौतेली माँ की क्रूरता के किस्से हम न सुनते। सास द्वारा बहुओं को जलाने के किस्से हम न सुनते। आज कल रोज ही ये सुनने में आता है की, महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर अपनी औलाद की हत्या की, या प्रेमी के साथ मिलकर अपनी ही बेटी का रेप करवाया। परिवार से पति को भड़काकर भाईयों, बुजुर्गों को देवर को भगाने वाली बहुएं और सौतेली माँ बनकर मानवता का गला घोटने वाली स्त्री को क्या “माँ” का दर्ज़ा दिया जा सकता है ? सच तो यह है कि माँ केवल सगी माँ ही बन पाती है।

जंगल में जब एक शेरनी मर जाती है तब, दूसरी शेरनी उसके बच्चे को पालती है। लेकिन यही गुण इन औरतों में क्यों नहीं देखा जाता ? सौतेली माँओं के किस्से रोज सुनने में क्यों आते हैं ? इतना सब होने के बाद भी महिला देवी ही है। अब हमें इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। अब समय आ गया है की कुंठित मानसिकता से हम बाहर निकले, तभी पूरे समाज को इन्साफ मिल पाएगा।

अगर कोई स्त्री आपका अपमान करे तो उसको भी सबक ज़रूर सिखायें। हम देवी की पूजा करते है, राक्षसियों की नहीं। भारत में पुरुषों को बलात्कारी, हत्यारा, दहेजलोभी इत्यादि न जाने क्या क्या कहकर संबोधित किया जाता है। ये कैसा समाज है कि, अगर कोई स्त्री, किसी पुरुष को, या कोई पुरुष, किसी स्त्री को थप्पड़ मारे तो दोनों ही मामलो में पुरुष ही दोषी समझा जाता है ? ये सोच हमारे देश में आरम्भ से ही चली आ रही है।

शायद इसी विचार के वशीभूत होकर ताड़का वध करने केपहले श्रीराम के हाथ भी रुक गए थे। “उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूंछा गुरुदेव क्या स्त्री वध उचित है ? ऋषि बोले - हे राम, स्त्री का सम्मान तभी तक उचित है, जब तक उसके भीतर नारीत्व जीवित है। ये राक्षसी है और इसने कई मनुष्यों को जिंदा खा लिया। राम ये स्त्री है ही नहीं, इसकी काया ही स्त्री की है, आत्मा नहीं। इसीलिए हे रघुकुलभूषण इसका वध करो।”

इस तरह अनादि काल से हम देखते है की, समाज स्त्री प्रधानता नाम के कैंसर से ग्रसित है। सूर्पनखा के कारण ही पूरी रामायण हुयी, लेकिन पुतला रावण का ही फूंका जाता है। द्रौपदी ने यदि कौरवों के अन्धे पिता का उपहास न किया होता तो महाभारत युद्ध भी नहीं होता। परन्तु दोष केवल कौरवों को दिया जाता है।

जो पुरुष देश की सीमा में अपना खून बहाता है ताकि देश सुरक्षित रहे। जो पुरुष खेतों में पसीना बहाता है ताकि लोग दो वक्त की रोटी खा सके। अपने परिवार को पालने के लिए पुरुष लोगों की गंदगी भी साफ़ करता है। लेकिन उसके बाद भी पुरुष बलात्कारी है हत्यारा है। और औरत तो आज अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपनी औलाद को ही मार देती है, फिर भी वो देवी है 

इसी मानसिकता से हमको बाहर निकलने की जरुरत है। इसी अन्धी मानसिकता को आधार बनाकर पुरुषों के खिलाफ कानून बनते हैं और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।

नाम मोहब्बत है - रौशन केशरी

आज तनहाइयों के दौर में, मैं लिख रहा तन्हाई,
बैठा हूँ, सोचता हूँ, यहाँ कोई आवाज ना कोई शहनाई,
जिस दौर से मैं गुजरा, वहाँ ना कुआँ था ना खायी,
चिखेंगी कविता बनकर, मेरे आंसुओं की तिस्निगायी,
पर एक दिन बताऊंगा तुझे, तेरी ही सच्चाई,
जब दहसत भी चीख उठेगी, देख तेरी बेपरवाही,
रूह हो गया मैं तो कब का, जब तूने कर दी रुसवाई,
अब तो जीता हूँ, इस जिस्म में बनके अदागायी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,

इस भीड़ में तू खो जाएगी, अश्रु मेरी तुझे ढूंढ लाएगी,
जब हर तर्पण, तुझसे उसका हिसाब मांगने आएगी,
भिखारन कही उस माँ को, जो थी तुझे अपनाई,
शब्द मेरे चीखेंगे, और चिन्खेगी इनकी गहरायी,
ना नाम रहेगा मेरा, ना रहेगी वजूद की जुदाई,
मैं त्रस्त हो चूका हूँ, तू और कुछ ना कर पायेगी,
मेरे सामने तू खुद की, सच्चाई कैसे छुपायेगी,
अरे ये नासमझों की अदालत, क्या फैसला सुनाएगी,
सोच उस अदालत में, तू मुझसे नजरें कैसे मिलायेगी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,

याद कर वो दिन जब थी कसम क्या तूने खिलवाई,
उसी की कसम के बदौलत, तेरे अपने हैं सभी वहाँ,
वरना, दूर सन्नाटे में कही चींखती उनकी वादा-खिलाफाई,
आज मेरे अपने सभी साथ छोड़ दिए तो क्या,
मैं खुद से करूँगा, खुद को मेरे अन्दर जीने की लड़ाई,
मेरा जो ध्येय है, उसे पूरा मैं हर संभव करूँगा,
अगर मैं मर भी गया तो भी,शब्दों में जिन्दा मैं रहूँगा,
तेरी नाकामयाब मोहब्बत की दास्तां ज़माने से कहूँगा,
पर तू अभी डर मत, अभी जिन्दा मैं रहूँगा,
अपनी कुछ जिम्मेदारियों को पूरा भी करूँगा,
बहन की शहनाई और भाई को है राह दिलाऊंगा,
हो सकता है, तब तक मैं कही रेत में खो जाऊंगा,
तर्पण का अर्थ बनकर दरिया को सोख जाऊंगा,
अब मैं ना रो पाउँगा, ना तू मुझे रुला पायेगी,
अश्रु को शब्दों में पिरोंऊंगा, कविता कहलाएगी,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,

तुझसे अब मोहब्बत ना करूँगा, ना नफरत करूँगा,
शब्दों का संसार बसा के, मैं बस लिखता रहूँगा,
तेरा ना जिक्र होगा, ना कोई तेरा कोई नाम होगा,
बेवफा तू कहलाएगी, मोहब्बत मेरा नाम होगा,
तेरा पता लिखने की जरुरत नहीं, अब क्या कहूँ,
तू सर-ए-बज्म में, खुद ही नीलाम होगा,
कल को तो ये मैं, लिबास छोड़ जाऊंगा,
फिर कहीं, और कभी एक दूसरे लिबास में,
तुम भी आ जाओगी, और मैं भी आ जाऊंगा,
पर इस बार सभी यादो को, सहेज मैं लाऊंगा,
जो किया तूने मेरे साथ, उसे फिर से मैं दोहराऊंगा,
फिर मैं तुझे तड़पता उस लिबास में छोड़ जाऊंगा,
जहाँ तुझे पता चले उस एहसास में छोड़ जाऊंगा,
पर शायद तू जानती है, मैं ऐसा ना कर पाउँगा,
तेरे आसुओं को रोकने मैं फिर लौट आऊंगा,
ना तू समझ सकी थी कभी, अब ना ही समझाऊंगा,
नाम मोहब्बत है, अपना फ़र्ज़ बस निभाऊंगा,

जब तक है जान - गुलज़ार

तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँतेरी हंसी की बेपरवाह गुस्ताखियाँ,
तेरी ज़ुल्फों की लहराती अंगराइयाँनहीं भूलूँगा मैं,
जब तक है जान... जब तक है जान...

तेरा हाथ से हाथ छोड़नातेरा सायों का रुख मोड़ना,
तेरा पलट कर फिर ना देखनानहीं माफ करूंगा मैं,
जब तक है जान... जब तक है जान...

बारिसों में बेधड़क तेरे नाचने सेबात-बात पर बेवजह तेरे रूठने से,
छोटी-छोटी तेरी बचकानी बदमासियों सेमोहब्बत करूंगा मैं,
जब तक है जान... जब तक है जान...

तेरी झूठी कसमों-वादों सेतेरे जलते-सुलगते ख्वाबों से,
तेरी बेरहम दुआओं सेनफ़रत करूंगा मैं,
जब तक है जान... जब तक है जान...

मैं जानता हूँ - रौशन केशरी

बहुत दिन से मैंने कुछ नहीं लिखा…
ज़िद थी कि इस बार लिखूंगा तो केवल खुशी में लिपटे शब्द…
पर ऐसा हो ना सका…
मैं ये भी नहीं कह सकता, कि मुझे नहीं मालूम क्यों मेरी कलम,
ख़ुशनुमाई छोड़कर अंधेरी ऊबड़-खाबड़ राहों पर चलने लगती है…
मैं ये नहीं कह सकता, क्योंकि जवाब मैं जानता हूँ…

बाकी बच गया अण्डा - नागार्जुन

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार,
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार।

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन,
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन।

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो,
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो।

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक,
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक।

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा,
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा।